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भारतीय श्रम सम्‍मलेन के 45वें सत्र में प्रधानमंत्री का भाषण




 भारतीय श्रम सम्‍मेलन के 45वें सत्र में नई दिल्‍ली में आज प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के भाषण का अनूदित पाठ इस प्रकार है:
यह एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण सम्‍मेलन है जिसमें श्रमिकों और उद्योग से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाता है जिसका हमारी अर्थव्‍यवस्‍था और व्‍यापक रूप से हमारे समाज पर भी असर पड़ता है। मुझे बेहद खुशी है कि प्रधानमंत्री के रूप में मैंने 2005 से शुरू हुए भारतीय श्रम सम्‍मेलन के 2009 के एक सत्र को छोड़कर सभी सत्रों में भाग लिया है। उस सत्र में तबियत खराब होने की जवह से मैं हिस्‍सा नहीं ले सका था। जैसा कि आपने सम्‍मेलन के 45वें सत्र की शुरूआत की, मैं आपको आपकी उपलब्धियों के लिए बधाई देने के साथ ही भविष्‍य में आपके प्रयासों के लिए शुभकामनाएं भी देता हूं। मैं आशा करता हूं कि यह सत्र पहले आयोजित सत्रों की उपलब्धियों को आगे बढ़ाएगा  ।

   आगे बढ़ने से पहले मैं यह भी कहना चाहता हूं कि हमारी सरकार ने श्रम संघों द्वारा समय-समय पर उठाए गए मुद्दों पर गंभीरता से ध्‍यान दिया है। श्रम संघों द्वारा हाल ही में की गई दो दिन की हड़ताल में न केवल कामगारों के बल्कि व्‍यापक रूप से लोगों के कल्‍याण से संबंधित अनेक मुद्दों पर ज़ोर दिया गया। इसमें वह मांगे शामिल है जिसपर असहमति का सवाल ही नहीं उठता। उदाहरण के तौर पर मुद्रास्‍फीति संबंधी, रोज़गार अवसर पैदा करने, श्रम कानूनों को सख्‍ती से लागू करने के लिए ठोस उपाय करने संबंधी मांगे निरपवाद हैं। हांलाकि इन मांगों को पूरा करने के तरीकों पर मतभेद हो सकते हैं और हम इस संबंध में श्रम संघों के साथ रचनात्‍मक बातचीत करने के इच्‍छुक हैं।

 श्रम संघों की अन्‍य मांगों पर सरकार पहले से विचार कर रही है । इसमें संगठित और असंगठित क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए सार्वभौम सामाजिक सुरक्षा कवर और राष्‍ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कोष बनाना, राष्‍ट्रीय स्‍तरीय न्‍यूनतम मज़दूरी तय करना तथा कर्मचारी पेंशन योजना के तहत प्रति वर्ष 1000 रूपए की न्‍यूनतम पेंशन की व्‍यवस्‍था जैसे मुद्दे शामिल हैं। राष्‍ट्रीय स्‍तरीय न्‍यूनतम मज़दूरी की एक वैधानिक व्‍यवस्‍था प्रदान करने के लिए मंत्रिमंडल न्‍यनूतम मज़ूदरी अधिनियम,1948 में संशोधनों को पहले ही मंज़ूरी दे चुका है।
  अन्‍य मांगों में जो मुद्दे शामिल हैं उस पर श्रम संघों के नेताओं के साथ त्रिपक्षीय चर्चाओं सहित और विचार-विमर्श करना ज़रूरी है। श्रम संघों की मांगों के सभी पहलुओं पर गौर करने के लिए हमने वित्‍त मंत्री की अध्‍यक्षता में मंत्रिसमूह का गठन किया है। मुझे उम्‍मीद है कि आप जल्‍द ही इन मांगों पर काम होते देखेंगे।
  मुझे लगता है कि श्रम संघों की अनेक मांगों में जो चिंता झलकती है वो यह है कि वे चाहते हैं कि वृद्धि और प्रगति समावेशी हो और इससे विशेष रूप से हमारे समाज के वंचित वर्गों को लाभ पहुंचे। इस मुद्दे पर सरकार का भी हमेशा ध्‍यान रहा है। मुझे लगता है कि इस उद्देश्‍य को हासिल करने के लिए सबसे बेहतरीन तरीका लोगों को लाभप्रद रोज़गार के अवसर उपलब्‍ध कराना है।
   कुछ उपलब्‍ध आंकड़ों के अनुसार हमने 2004-05 और 2009-10 की अवधि के दौरान 20 मिलियन अतिरिक्‍त रोजगार के अवसरों का सृजन किया।  इसी अवधि में बेरोज़गारी की दर 8.3 प्रतिशत से गिरकर 6.6 प्रतिशत पर आ गई। यह दौर वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था में मंदी के सबसे खराब दौर में से एक था और इस अवधि में जब अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में बेरोज़गारी का प्रतिशत बढ़ रहा था ऐसे में हम फिर भी अतिरिक्‍त रोज़गार सृजित कर पा रहे थे। संगठित क्षेत्र में 2005 में 26.5 मिलियन से लेकर 2011 तक 29 मिलियन रोज़गार के अवसर पैदा किए गए जिसमें 9 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई। यह भी खुशी की बात है कि इसी अवधि में संगठित क्षेत्र में नियोजित महिलाओं की संख्‍या में भी लगभग 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

 हमारी सरकार ने महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) , राष्‍ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन , स्‍वर्णजयंती शहरी रोजगार योजना और प्रधानमंत्री के रोज़गार सृजन कार्यक्रम जैसे विभिन्‍न रोज़गार सृजन कार्यक्रमों को लागू करने में ठोस प्रयास किए हैं।  पिछले कुछ वर्षो में सरकार ने इन योजनाओं का आवंटन बढ़ाया है जिसमें कई पुरूषों और महिलाओं विशेष रूप से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्‍य पिछड़ा वर्ग के लोगों को रोज़गार के अवसर प्रदान किए गए हैं। मनरेगा से श्रमिकों के एक राज्‍य से दूसरे राज्‍य में पलायन को कम करने और ग्रामीण परिवारों की खरदारी क्षमता बढ़ाने में मदद मिली है। इस योजना के तहत महिलाओं की भागीदारी 48 प्रतिशत से अधिक है। यह बात भी खुशी की है कि गांवों की बड़ी संख्‍या में महिलाएं स्‍व रोज़गार अवसरों की ओर रूख कर रही हैं। हमारे देश में कुल 44.32 लाख स्‍व सहायता समूहों में से 30.21 लाख विशेष रूप से महिलाओं के लिए हैं जो कि 68 प्रतिशत है।  हम चाहते हैं कि भविष्‍य में भी यह प्रयास ऐसे ही आगे बढ़ता रहे।
  युवाओं को रोज़गार के अवसर उपलब्‍ध कराने के लिए हमारे प्रयासों में कौशल विकास काफी महत्‍वपूर्ण है। तेज़ और समावेशी वृद्धि के हमारे उद्देश्‍य को हासिल करने में भी कुशल श्रमिक बल की आवश्‍यकता है। इसलिए हमने कौशल विकास पर विशेष ज़ोर दिया है।

  हमारा उद्देश्‍य 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक 5 करोड़ लोगों को कुशल बनाना है। इससे न केवल बेहतर रोज़गार पैदा करने में मदद मिलेगी बल्कि उद्योग को भी अपना कामकाज बढ़ाने तथा आधुनिक बनाने के लिए कुशल श्रमिक बल उपलब्‍ध हो सकेगा। पिछले पांच वर्षों में देश में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्‍थानों (आईटीआई) की संख्‍या दुगुनी होकर लगभग 5000 से लगभग 10000 हुई है। लगभग 1700 सरकारी आईटीआई को आधुनिक बनाया गया है। 12वीं पचंवर्षीय योजना (2012-17) में अन्‍य 3000 आईटीआई, 5000 कौशल विकास केंद्र और 27 उन्‍नत प्रशिक्षण संस्‍थान बनाने का प्रस्‍ताव है। श्रम और रोज़गार मंत्रालय के मॉड्यूलर इम्‍प्‍लाएबल स्किल्‍ज़ (एमईएस) कार्यक्रम के तहत सरकारी और निजी ढांचागत सुविधाओं के इस्‍तेमाल से संभावित प्रशिक्षुओं को अल्‍पकालिक पाठ्यक्रम उपलब्‍ध कराए जाते हैं। यह असंगठित क्षेत्र में रोज़गार के अवसर तेज़ी से बढ़ाने का एक प्रयास है।

  महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍यों को हासिल करने में केंद्र सरकार और राज्‍य सरकारों के प्रयासों में निजी क्षेत्र को भी सहयोग करना होगा। इसके अतिरिक्‍त नौकरियों में उभर रहीं ज़रूरतों के हिसाब सक कौशल की आवश्‍यकता पर ध्‍यान देना होगा। इसके लिए कौशल निर्माण के लिए वैश्विक मानक पर आधारित राष्‍ट्रीय मानक बनाने, विशेष कौशल के लिए उपयुक्‍त पाठ्यक्रम विकसित करने, तथा मौजूदा प्रमाणित निकायों को मज़बूत करने के अतिरिक्‍त नई मूल्‍यांकन और प्रमाणित निकायों का गठन करना होगा।

 कौशल विकास के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रयासों को बढ़ाने के लिए राष्‍ट्रीय कौशल‍ विकास निगम की स्‍थापना हुई थी। इसके अतिरिक्‍त राष्‍ट्रीय कौशल योग्‍यता ढांचे (एनएसक्‍यूएफ) को सहयोग तथा क्रियाशील बनाने के लिए सरकार ने हाल ही में राष्‍ट्रीय कौशल विकास एजेंसी (एनएसडीए) बनाने को फैसला किया है जिसे हमारे देश में प्रशिक्षण की गुणवत्‍ता के रूपांतरण में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। एनएचडीए के तहत कौशल विकास की प्रकियाओं में सामाजिक, क्षेत्रीय , लैंगिक और आर्थिक अंतर को कम करने की भी कोशिश रहेगी।
  इसमें कोई संदेह नहीं कि उद्योग, श्रम संघों और सरकार की सक्रिय भागीदारी के साथ हम युवाओं में रोज़गार संबंधी क्षमताओं के सुधार में अधिक प्रभावी परिणाम हा‍सिल कर सकेंगे और साथ ही उनकी बढ़ती आकांक्षओं के अनुरूप रोज़गार के अवसर सृजित करने का मार्ग प्रशस्‍त कर सकेंगे। इस काम के प्रति मैं वचनबद्ध हूं।

  सन् 2004 में संयुक्‍त प्रगतिशील संगठन (संप्रग) सरकार के सत्‍ता में आने के बाद हमने कामगारों के कल्‍याण के कार्य शुरू किए। जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं कि मैंने सन 2005 में इस सम्‍मेलन के 40वें सत्र को संबोधित करते हुए क्‍या कहा था तो मैं संतोष महसूस करता हूं कि हमने उस समय जो वायदे किये थे, उनको काफी हद तक पूरा किया है। मैंने उस समय कामकाजी लोगों के लिए एक नई पहल की आवश्यकता के बारे में कहा था। वह आवश्‍यकता सभी कामगारों खासकर असंगठित क्षेत्र के कामगारों के कल्‍याण और कुशलता सुनिश्चित करने और इस बारे में विचाराधीन कानून पारित कराने की थी। मुझे प्रसन्‍नता है कि हमने इन क्षेत्रों में अच्‍छे परिणाम प्राप्‍त किए हैं। तथापि, मैं यह महसूस करता हूं कि इस बारे में हमें अभी बहुत कुछ करने की आवश्‍यकता है।    

 हमने असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए स्‍मार्ट कार्ड आधारित अस्‍पताल में भर्ती की सुविधाओं के लिए सन 2008 में राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना (आरएसबीवाई) शुरू की थी। हमने राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना (आरएसबीवाई) की पहुंच का विस्‍तार किया है, ताकि अनौपचारिक क्षेत्र के अधिक से अधिक कामगारों को लाभ पहुंचाया जा सके। इस योजना के अधीन अब तक 3.41 करोड़ स्‍मार्ट कार्ड जारी किए गए है। आरएसबीवाई के अधीन अब अन्‍य वर्गों के कामगारों जैसे निर्माण मज़दूरों, रेहड़ी-खोमचा वालों, घरेलू नौकरों और यहां तक कि महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के लाभार्थियों को भी शामिल किया गया है।

हमारी सरकार ने अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों के लाभ के लिए असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 पारित किया।
   हमने बोनस अदायगी अधिनियम, 1965 के अधीन पात्रता सीमा 3500 रू. प्रतिमाह से बढ़ाकर 10,000 रू. प्रतिमाह कर दी है। मातृत्‍व लाभ अधिनियम,1961 के अधीन देय चिकित्‍सा बोनस भी बढ़ा दिया गया है। हमने राजीव गांधी श्रमिक कल्‍याण योजना के अधीन निकाले गए कामगारों के लिए बेरोजगारी भत्‍ता की अवधि 6 महीने से बढ़ाकर एक साल कर दी है।
सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और पर्यावरण संबंधी राष्‍ट्रीय नीति और एचआईवी एवं एड्स संबंधी राष्‍ट्रीय नीति को वर्ष 2009 में कार्य जगत में लागू किया गया।

 हमने बाल श्रम को समाप्‍त करने के लिए सार्थक उपाय किए है। 14 वर्ष से कम आयु के सभी प्रकार के बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाने के लिए हमारी सरकार ने बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम, 1986 को संशोधित करने का निर्णय लिया है, ताकि हमारे बच्‍चे शिक्षा के अपने अधिकार का उपयोग कर सके। मुझे खुशी है कि हमारे देश में श्रमिकों के रूप में काम करने वाले बच्‍चों की संख्‍या जहां 2004-05 में 90.75 लाख थी वह वर्ष 2009-10 में गिरकर 49.84 लाख रह गई है। इस प्रकार इसमें 45 प्रतिशत की कमी आई है। हमें अब इसे और नीचे लाने की आवश्‍यकता है।
    कुछ अधिनियमों जैसे श्रम कानून (विशिष्‍ट संस्‍थानों द्वारा रिटर्न दाखिल करने और रजिस्‍टरों के रख-रखाव से छूट) अधिनियम, 1988, खान अधिनियम, 1952 और अंतर्राज्‍य प्रवास कामगार (रोजगार और सेवा शर्तों का नियमन) अधिनियम, 1979 को संशोधित करने के लिए कई विधेयक पेश किए गए है। इसके अलावा, श्रम कानूनों में कई संशोधन विभिन्‍न चरणों में विचाराधीन हैं।

कर्मचारी राज्‍य बीमा निगम (ईएसआईसी) अधिनियम वर्ष 2010 में संशोधित किया गया था ताकि उन फ़ैक्टरियों को भी इस अधिनियम के अधीन लाया जा सके जो 10 या अधिक कामगारों को नौकरी पर लगाते है, पहले यह सीमा 20 कामगारों की थी। इस बीमा योजना के अधीन लाभ प्राप्‍त करने वाले कर्मचारियों की मजदूरी सीमा 10,000 रू. प्रतिमाह से बढ़ाकर 15,000 रू. प्रतिमाह कर दी गई है। इस प्रकार इस योजना के अधीन आने वाले संस्‍थानों की संख्‍या जहां वर्ष 2008-09 में 3.94 लाख थी वहां 2011-12 के अंत तक यह संख्‍या बढ़कर 5.80 लाख हो गई है। 27 ईएसआईसी अस्‍पतालों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है और 4 अस्‍पतालों का दर्जा पहले ही बढ़ा दिया गया है। वर्ष 2011-12 में ईएसआईसी के 5 नए अस्‍पताल चालू किए गए है। बीमाशुदा लोगों को अब स्‍मार्ट कार्ड जारी किए जा रहे हैं और उन्‍हें भी सुपर स्‍पेशिऐलिटी उपचार की सुविधाएं दी जा रही है। ईएसआईसी ने बड़े पैमाने पर कम्‍प्‍यूटीरिकृत परियोजना शुरू की है ताकि बीमाशुदा लोगों को अधिक कारगर रूप से लाभ दिए जा सके।
कर्मचारी भविष्‍य निधि संगठन में किए गए आधुनिकीकरण के उपायों के परिणामस्‍वरूप दावों के निपटान में पिछले वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत वृद्धि हुई है। भविष्‍य निधि कोष के सभी खातों की ‍ स्थिति अब ऑनलाइन पर उपलब्‍ध है। इसके साथ-साथ महत्‍वपूर्ण लेखा सूचना के लिए एसएमएस अलर्ट की सुविधा भी है। राष्‍ट्रीय इलैक्‍ट्रॉनिक कोष हस्‍तांतरण (एनईएफटी) के जरिए अदायगी अब संभव हो गई है।
    कामगारों के कुछ अति संवेदनशील समूह होते हैं जिनकी ओर हमारे विशेष ध्‍यान की आवश्‍यकता है। मैं इस सम्‍मेलन से अनुरोध करता हूं कि वे प्रवासी कामगारों, घरेलू नौकरों और जोखिम भरे हालात में काम करने वालों के कल्‍याण पर विशेष ध्‍यान दें। इन समूहों को न केवल विशेष विधायी समर्थन की आवश्‍यकता है बल्कि उनकी सुरक्षा और कल्‍याण के लिए मौजूदा कानूनों को अधिक कारगार रूप से लागू करने की भी आवश्‍यकता है। हमें उनके कामकाज की परिस्थितियों में सुधार लाने के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय सर्वोत्‍तम परंपराओं को अपनाने की भी आवश्यकता है।

  भारत सरकार, उद्योग, मजदूर संघों और राज्‍य सरकारों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि हमारे समाज, अर्थव्‍यवस्‍था और देश को सुदृढ़ किया जा सके। मैं इस अवसर पर इस प्रकार की भागीदारी को तैयार करने के लिए अपनी सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता को दोहराना चाहता हूं। हम सभी जानते हैं कि हमारी अर्थव्‍यवस्‍था कठिन परिस्थितियों के दौर से गुजर रही है और हमारा विकास भी हमारी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। सरकार इस स्थिति को बदलने के लिए काम कर रही है और मुझे विश्‍वास है कि हम ऐसा कर सकते हैं और हम करेंगे। हमें इसके लिए उद्योग मालिकों और मजदूर यूनियनों के सहयोग की भी आवश्‍यकता है। हाल के महीनों में हमने निवेश बढ़ाने, उद्यम को प्रोत्‍साहित करने और व्‍यापार संबंधी मनोभावना को सुधारने के कई उपाय किये हैं। हमने उद्योग संबंधी नई गतिविधि में रोड़ा अटकाने वाली बाधाओं को दूर करने की आवश्‍यकता की तरफ विशेष ध्‍यान दिया है। मैं सभी उद्योग मालिकों और मजदूर यूनियनों के नेताओं से आग्रह करता हूं कि वे हमारे इन प्रयासों को सफल बनाने में सहायता करें। अंत में मैं आपके विचार विनिमय की सफलता की कामना करता हूं।

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