भारतीय दूरसंचार क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान शानदार वृद्धि दर्ज की है और चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरभाष नेटवर्क बन गया है। सरकार द्वारा श्रृंखलाबद्ध तरीके से किए गए सुधारों उपायों की मदद से वायरलेस तकनीक और निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी ने देश में दूरसंचार क्षेत्र के व्यापक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश भर में ब्राड बैंड सेवाएं, सुरक्षित दूरसंचार को वहनीय और उपयोगी स्तर पर उपलब्ध कराने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ राष्ट्रीय दूरसंचार नीति-2012 (एनटीपी-2012) की घोषणा की गई थी। एनटीपी-2012 के कार्यान्वयन के साथ दूरसंचार कनेक्शनों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई। जनवरी, 2013 में ग्रामीण दूरसंचार कनेक्शन के साथ दूरसंचार कनेक्शन की संख्या 893.14 मिलियन थी। इसमें पिछले वर्ष करीब 10 मिलियन की वृद्धि हुई है। जनवीर, 2013 में कुल दूसरसंचार घनत्व 76.07 प्रतिशत था जिसमें ग्रामीण दूरसंचार घनत्व 40 प्रतिशत की सीमा को पार कर लिया। मार्च, 2004 में कुल 7.04 प्रतिशत दूसरसंचार घनत्व और करीब 1.7 प्रतिशत ग्रामीण दूसरसंचार घनत्व की तुलना में यह एक तीव्र वृद्धि को दर्शाता है। जहां तक मोबाइल की वृद्धि का प्रश्न है, वायरलैस दूरसंचार के उपयोग को वरीयता देना जारी है। 31 मार्च, 2012 को वायरलैस दूरसंचार की भागीदारी 96.62 प्रतिशत से बढकर जून, 2012 के अंत तक 96.74 प्रतिशत तक पहुंच गई, हालांकि इसके बाद दिसंबर, 2012 के अंत तक यह कुछ कम होकर 96.56 प्रतिशत पर आ गई। दूसरी ओर अप्रैल से दिसंबर, 2012 की अवधि के दौरान लैन्डलाईन टेलीफोन की भागीदारी 3.38 प्रतिशत से बढकर 3.44 प्रतिशत तक पहुंच गई। वायरलैस उपभोक्ता की संख्या भी मार्च, 2004 के 33.6 मिलियन से बढ़कर दिसंबर, 2012 में 864.72 मिलियन पर पहुंच गई। इसी प्रकार जीएसएम सेवाओं के लिए प्रति मिनट आउटगोइंग कॉल के लिए दिए जाने वाला औसत शुल्क मार्च, 2004 में 2.89 रूपये से घटकर दिसंबर, 2012 में 47 पैसे हो गया। |
Home
» समाचार
» पिछले नौ वर्षों में दूरसंचार घनत्व 7.04 प्रतिशत से बढ़कर 73.07 प्रतिशत हुआ, औसत कॉल दरें 2.89 रूपये से घटकर 47 पैसे तक हुई
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
निवेदन :- अगर आपको लगता है की ये लेख किसी के लिए उपयोगी हो सकता है तो आप निसंकोच इसे अपने मित्रो को प्रेषित कर सकते है