राष्ट्रपति ने संकेत दिए हैं कि अगले वर्ष विश्व अर्थव्यवस्था में जबर्दस्त उछाल आ सकता है। नई दिल्ली स्थित इंडियन इंस्टीयूट ऑफ फॉरेन ट्रेड के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित करते हुए श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि ऐसे समय में भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय मांग से लाभ उठाने और अपने निर्यात उद्योग को मजबूत बनाने का अच्छा मौका है। श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से समेकित करके से हम अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट से अपनी अर्थव्यवस्था को बचा सकते हैं। हमने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अनेक भागीदार देशों को अपने निर्यात व्यापार में शामिल करके उसका विविधीकरण किया है। इस तरह से नए देशों के साथ पिछले वर्ष (2012-13) पिछले वर्ष किया गया निर्यात कुल के दो तिहाई के बराबर था। अब अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ रही है। हम इससे अपना बचाव विविधीकरण के जरिए कर सकते हैं। श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि पिछले दशक के दौरान हमारे आर्थिक निष्पादन में काफी सुधार आया और इसके कारण पिछले 10 वर्षों के दौरान हमारी अर्थव्यवस्था की वार्षिक विकास दर 7.9 प्रतिशत रही जो स्वस्थ्य कही जाएगी। उन्होंने कहा कि 2008 में जो अंतर्राष्ट्रीय संकट दिखाई पड़ा था, वह असलियत से कहीं ज्यादा था। इसके अगले वर्षों यानी 2009-10 और 2010-11 में हमारी अर्थव्यवस्था की विकास दर क्रमश 8.6 प्रतिशत और 9.3 प्रतिशत रही, हालांकि इससे पहले विकास दर का लगाया गया अनुमान इससे कम था। इस आर्थिक संकट से पिछले 2 वर्षों में हमारी अर्थव्यस्था में सुस्ती आई। उन्होंने भरोसा जाहिर किया कि 2010-13 के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर बेहतर रहेगी। राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च आर्थिक विकास दर प्राप्त करने के लिए हम भूमंडलीकरण की नीति को अपनी कार्यनीति बना रहे हैं। हमारा विदेश व्यापार सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में 1991-92 में जहां 15 प्रतिशत था, वहीं अब यह 44 प्रतिशत है। हमारे निर्यात क्षेत्र ने बहुत अच्छा कामकाज दिखाया है। देश से जहां 1991-92 में 17.9 अरब अमरीकी डालर मूल्य का निर्यात हुआ था, वहीं अब (2012-13) यह 300.6 अरब अमरीकी डालर हो गया है। श्री मुखर्जी ने कहा कि 1991-92 से हमारी औसत वार्षिक विकास दर 2000-01 तक 10.7 प्रतिशत रही। 2001-01 से 2012-13 तक की अवधि के दौरान विकास दर बढ़कर 19.1 प्रतिशत हो गई। उन्होंने कहा कि भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश बन गया है और वह दूसरे नम्बर का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक देश है। उन्होंने कहा कि जहां हमें इन जिन्सों के निर्यात में बेहतर कामकाज के लिए गर्व होना चाहिए, वहीं हमें विकास पर नजर रखने और चौकस रहने की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि देश के सभी लोगों को वाजिब दरों पर खाद्य पदार्थ उपलब्ध रहें। इसी सिलसिले में उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देशों के साथ भारत ने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते किए हैं। इनमें सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, जापान और मलेशिया प्रमुख हैं। आसियान के साथ भी ऐसा ही समझौता किया गया है और यूरोपीय संघ के कई देशों के साथ बातचीत चल रही है। राष्ट्रपति ने इंडियन इंस्ट्टीयूट ऑफ फॉरेन ट्रेड के स्वर्ण जयंती समारोह में शामिल होने पर खुशी जाहिर की और कहा कि इस संस्थान ने पिछले वर्षों में प्रबंध शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम किया है। उन्होंने कहा कि ऐसे संस्थानों का उद्देश्य सिर्फ सफल प्रबंधक, व्यापार नेता, शैक्षणिक चिन्तक पैदा करना ही नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें सामाजिक रूप से जागरूक नागरिक तैयार करने चाहिए जिनमें समाज की जरूरतों के मुताबिक जवाब देने की क्षमता और चेतना हो। |
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