संस्कृति मंत्री श्रीमती चन्द्रेश कुमारी कटोच ने आज लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया कि यूनेस्को ने लुप्तप्राय भाषाओं पर 2009 की अपनी रिपोर्ट में उन 196 भारतीय भाषाओं/मातृभाषाओं को सूचीबद्ध किया है जो विभिन्न स्तरों पर लुप्त होने के संघर्ष से जूझ रही हैं। तथापि, उनमें से सभी भाषाएं लुप्तप्राय होने की स्थिति में नहीं हैं।
भाषाओं की लुप्तप्राय स्थिाति का एक कारण यह हो सकता है कि उस भाषा के बोलने वाले लोग किसी अन्य भाषा को अपनाकर उसी भाषा में बातचीत करने लगे हैं या फिर जनसंख्या की आर्थिक-सामाजिक प्रतिकूलताओं के कारण इन भाषाओं के बोलने वालों की संख्या में कमी आ गई है।
जब कोई भी भाषा लुप्तप्राय हो जाती है तो उसके साथ ही संस्कृति और विरासत का भी लोप हो जाता है।
12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआइएल), मैसूर द्वारा 1000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली 520 भाषाओं/मातृभाषाओं के अनुरक्षण, परिरक्षण के लिए एक स्कीम लागू की जा रही हैं जिसमें सबसे कम बोलने वालों की भाषा से प्रारंभ करके बढ़ते हुए क्रम से बोलने वालों की संख्याओं वाली भाषाएं शामिल हैं।
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