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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज न्यायमूर्ति पी सदाशिवम को देश के 40वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ दिलाई।





नई दिल्ली। न्यायमूर्ति सदाशिवम (64) ने न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर का स्थान लिया है जिन्होंने नौ महीने तक प्रधान न्यायाधीश के पद पर अपनी सेवाएं दीं। राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में न्यायमूर्ति सदाशिवम ने ईश्वर के नाम पर शपथ ली।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, संप्रग प्रमुख सोनिया गांधी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरूण जेटली, राजग के कार्यकारी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, भाकपा नेता डी राजा और कई केंदीय मंत्री शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थे। अगस्त, 2007 में न्यायमूर्ति सदाशिवम को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया था और वह प्रधान न्यायाधीश के पद पर 26 अप्रैल, 2014 तक कार्यरत रहेंगे।

न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की तरह न्यायमूर्ति सदाशिवम भी उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था को खत्म करने के विरोध    में हैं। इसके साथ ही उन्होंने स्वीकार किया है कि कोलेजियम व्यवस्था में कमियां हैं और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जा सकते हैं। न्यायमूर्ति सदाशिवम का जन्म 27 अप्रैल, 1949 को हुआ था। उन्होंने जुलाई, 1973 में मदास में बतौर वकील पंजीकरण करवाया और जनवरी, 1996 में मदास उच्च न्यायालय के स्थाई न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए।

इसके बाद अप्रैल, 2007 में उनका तबादला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में कर दिया गया। प्रधान न्यायाधीश के तौर पर अपनी योजना के बारे में उन्होंने कल कहा था, मामलों के निपटारे में विलंब एक बड़ा मुद्दा है। न्याय की गुणवत्ता और मात्रा में इजाफा कर इस परेशानी से उबरा जा सकता है।

न्यायमूर्ति सदाशिवम ने कहा कि वह दलीलों और लिखित बयानों को जमा कराने की समयसीमा तय करने का प्रयास करेंगे ताकि अदालतों में लंबित मामलों की संख्या को कम किया जा सके।

न्यायमूर्ति सदाशिवम ने कई बड़े फैसले दिए हैं जिनमें मुंबई विस्फोटों का मामला और पाकिस्तानी वैज्ञानिक मोहम्मद खलील चिश्ती का मामला भी शामिल है। न्यायमूर्ति सदाशिवम और न्यायमूर्ति बी सी चौहान ने मुंबई विस्फोटों के मामले में अभिनेता संजय दत्त और कई दूसरे अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखा था। इनकी पी" ने 1993 के विस्फोटों के मामले में पाकिस्तान की इस बात के लिए भर्त्सना की थी कि उसकी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने इन विस्फोटों को अंजाम देने वालों को प्रशिक्षण मुहैया कराया और वह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपनी सरजर्मी से होने वाले आतंकवादी हमलों को रोकने में नाकाम रही है। पाकिस्तानी वैज्ञानिक चिश्ती की सजा को रद्द करने वाला फैसला भी न्यायमूर्ति सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पी" ने दिया था।

न्यायमूर्ति सदाशिवम ने आस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस से जुड़े तिहरे हत्याकांड के मामले में भी फैसला सुनाया था। उन्होंने इस मामले में दारा सिंह की सजा को बरकरार रखा था। सरकारी क्वार्टरों पर प्रभावशाली लोगों द्वारा अवैध रूप से कब्जा जमाने के मामले में न्यायमूर्ति सदाशिवम ने सरकारी अधिकारियों को सुझाव दिया था कि इनको खाली कराने के लिए उचित बल का इस्तेमाल किया जाए। उन्होंने राजनीतिक दलों की ओर से मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव में मुफ्त उपहार बांटने से जुड़े वादों को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की जड़ों को कमजोर करने वाले बताया था और निर्वाचन आयोग को आदेश दिया था कि वह घोषणापत्रों में शामिल ऐसी बातों पर नियंत्रण को लेकर दिर्शानिर्देश बनाए।

 न्यायमूर्ति सदाशिवम उस पी" में भी शामिल थे जिसने गैस की कीमत के मुद्दे पर अंबानी बंधुओं के बीच की कानूनी लड़ाई की सुनवाई की थी तथा यह फैसला दिया था कि गैस प्राकृतिक और राष्ट्रीय संपत्ति है। उन्होंने हाल ही में कहा था कि बच्चों, महिलाओं और वरिष्" नागरिकों से संबंधित आपराधिक मामलों के त्वरित निपटारे के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने को लेकर कदम उ"ाएंगे। प्रधान न्यायाधीश ने यह भी स्वीकार किया था कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है ,लेकिन कहा था कि सरकार के दूसरे अंगों के मुकाबले यह बहुत कम है।

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