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मनरेगाः लागू होने के बाद भी रोजगार की तलाश में लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन जारी है।





नई दिल्ली। कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय द्वारा कराये गये एक अध्ययन की रपट के मसौदे लगता है कि संप्रग सरकार की महत्वकांक्षी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून ःमनरेगाः लागू होने के बाद भी रोजगार की तलाश में लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन जारी है।
वर्ष 2006-07 से लागू मनरेगा का एक प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में गरीबों को स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर कराना है ताकि लोगों का शहरों की ओर पलायन रोका जा सके। बेंगलूर स्थित `इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एंड इकोनामिक चेंज' के कृषि विकास एवं ग्रामीण परिवर्तन केन्द के प्रमुख प्रो प्रमोद कुमार के नेतृत्व में तैयार इस अध्ययन रपट के मसौदे को अभी अंतिम रूप दिया जाना है।
रपट में कहा गया है, `मजदूरी, खाद्य सुरक्षा और गांव-शहर के बीच आबादी की आवाजाही पर मनरेगा का प्रभावः एक एकीकृत रिपोर्ट' शीर्षक से जारी मसौदा रपट के अनुसार मनरेगा के तहत काम नहीं मिलने के कारण औसतन 47 सदस्यीय एक परिवार के करीब 020 सदस्यों (यानी पांच परिवारों के बीच कम से कम एक व्यक्ति) ने पलायन किया है।   कुल 16 राज्यों में किये गये इस अध्ययन की मसौदा रपट के अनुसार मनरेगा के तहत काम नहीं मिलने के कारण सर्वाधिक पलायन असम में दर्ज किया गया।  वहां यह संख्या प्रति परिवार औसतन 054 (2 परिवारों के बीच औसन एक व्यक्ति से अधिक) रही। इसके बाद क्रमशः राजस्थान (044 प्रतिशत) मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र (031), आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश (02 प्रतिशत) का स्थान रहा। अन्य राज्यों में यह आंकड़ा 01 सदस्य (औसतन दस परिवार के बीच एक सदस्य) रहा। प्रमोद कुमार ने बेंगलूर से फोन पर कहा, मनरेगा का एक प्रमुख उद्देश्य रोजगार चाहने वाले ग्रामीण गरीबों को गांव के आसपास रोजगार उपलब्ध कराना है। पर अध्ययन से यह पता चला है कि यह इस मकसद में पूरी तरह कामयाब नहीं है। इसका कारण पूछे जाने पर प्रमोद कुमार ने कहा, दरअसल मनरेगा पंजीकृत सभी लोगों को निर्धारित 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने में सफल नहीं रहा है जिससे पलायन जारी है।    पंचायत और अन्य अधिकारियों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि रोजगार उपलब्ध नहीं करने का प्रमुख कारण कोष का अभाव है। कई बार केंद की तरफ से समय पर कोष नहीं उपलब्ध कराया जाता, कई बार पंचायत अधिकारियों के पास देर से पैसा पहुंचता है और अगर कोष आता भी है तो वह कुछ महीने के लिये होता है न कि पूरे साल के लिये।



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