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हिमालयी क्षेत्र के कई हिस्से भूकंप के प्रति संवेदनशील(एनजीआरआई)




 

हैदराबाद,  शहर के नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इन्स्टीट्यूट (एनजीआरआई) के एक अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय हिमालीय क्षेत्र के कई भाग भूकंप के प्रति संवेदनशील हैं और वहां भूकंप आने का खतरा है।

एनजीआरआई के वैज्ञानिक दल का अध्ययन करने वाले प्रमुख वैज्ञानिक (सीस्मिक टोमोग्राफी) श्याम राय ने प्रेस ट्रस्ट को बताया `अध्ययन के लिए उत्तराखंड के कुमाउ....गढ़वाल क्षेत्र में सिस्मिक इमैजिंग के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है।'

सिस्मिक इमैजिंग मानव शरीर की इमैजिंग की तरह होती है। अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से यह अध्ययन अप्रैल 2005 से जून 2008 के बीच किया गया। अमेरिकी सरकार को इस अध्ययन की जरूरत थी और इसकी शुरूआती रिपोर्ट  वर्ष 2010 में सौंपी गई थी। बहरहाल, सिस्मिक इमैजिंग और अध्ययन के अन्य पहलुओं का विस्तृत ब्यौरा इसके बाद ही मिला।

यह पूछे जाने पर कि क्या उत्तराखंड में पिछले माह हुई भीषण बारिश का संबंध अध्ययन के नतीजों से है, राय ने कहा `नहीं।' बहरहाल उन्होंने कहा कि यह सब मिलीजुली प्रणाली है। उन्होंने कहा `उत्तराखंड को इसलिए चुना गया क्योंकि कुछ आंकड़े उपलब्ध थे जिनसे पता चलता है कि इस क्षेत्र में ख्ंिाचाव ःस्ट्रेन बिल्ड...अप बहुत ज्यादा है। इसीलिए यहां भूकंप आने की आशंका भी अत्यधिक है। वह जानना चाहते थे कि भूकंप कहां आ रहे हैं। कुमाउढं में वर्ष 1803 में तीव्र भूकंप आया था।' एनजीआरआई वैज्ञानिकों के दल की अगुवाई कर रहे मुख्य वैज्ञाानिक भूंकपीय टोमोग्राफीः श्याम राय ने उस दिन के ब्रिटिश गजट का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 1803 में आए भूकंप के झटके लखनउढ तक महसूस किए गए थे।  राय ने कहा, उससे बड़ा नहीं तो उसी तीव्रता का भूकंप भी आज अगर आता है, तो नए निर्माण, बांधों और इतनी बड़ी आबादी के कारण इसके परिणाम कही अधिक गंभीर हो सकते हैं।

इसी संदर्भ में सरकार ने यह फैसला किया कि हमें उचित निगरानी करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारतीय हिमालयी क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में कई विनाशकारी भूकंप आ चुके हैं। भूवैज्ञानिकों ने पाया कि बदीनाथ, केदारनाथ से लेकर उत्तर पश्चिम हिमालय की ओर जा रही लकीर के करीब ही 90 फीसद से अधिक भूकंप आए हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अंतर्गत आने वाला एनजीआरआई देश का सबसे बड़ा अनुसंधान एवं विकास संग"न है।

राय ने बताया, ऐसा हमेशा से कहा जाता है कि भारत एशिया से नीचे खिसक रहा है और इसी वजह से सभी भूकंप आ रहे हैं... इसलिए, यह कुछ कोणों से नीचे जा रहा होगा। अगर यह कोण निर्बाध है, तो ऐसे में किसी उढर्जा एकाग्रता की संभावना बेहद कम हो जाती है। लेकिन यह कोण बढ़ जाता है, तो उढर्जा एकाग्रता की आंशका बढ़ जाती है, जहां यह मुड़ने लगता है।

राय ने कहा, शुरुआत में ऐसा कहा जाता था कि भारत 4-5 डिग्री के कोण से नीचे जा रहा है, जो निर्बाधा था। हालांकि, जब हमने इसका अध्ययन किया, तो हमने पाया कि यह सही नहीं है। एनजीआरआई दल द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि यहां 16 डिग्री के तीव्र कोण पर भूकंपीय गतिविधियां चल रही थीं। उन्होंने कहा कि चमोली के इर्द गिर्द यह हो रहा है।

पिछले एक दो वर्ष में उत्तरकाशी और चमोली में भूकंप के कई झटके आए हैं और इनमें से ज्यादातर वहीं आए हैं, जहां यह मुड़ रहा है।प्रमुख भूवैज्ञानिक ने कहा, इसी वजह से हमने यह बयान जारी किया था कि यह मुड़ रहा है और काफी तेज कोण से मुड़ रहा है।उन्होंने कहा कि यहां की भूगर्भीय गतिविधियां इस क्षेत्र को अतिसंवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र बना देती हैं।उन्होंने कहा, उढर्जा एकाग्रता की आशंका बेहद बढ़ गई है। उढर्जा एकाग्रता बदस्तूर जारी है और यहां कोई बड़ा भूकंप भी नहीं आ रहा। इसका अर्थ यह है कि उढर्जा इस जगह पर लगातार संग्रहित हो रही है। लेकिन यह अनंत काल तक चलता नहीं रहेगा। एक दिन इस उढर्जा को मुक्त होना और जब यह मुक्त होगी तब यहां आ" से अधिक तीव्रता का कोई बड़ा भूकंप या सात से अधिक तीव्रता वाले 20-30 भूकंप आ सकते है।

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