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आम आदमी पार्टी तिमारपुर विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी पंकज पुष्कर का परिचय

ABSLM -15/1/2015
लक्ष्मण सिंह स्वतंत्र

छात्र-जीवन से ही राजनीतिक और सामाजिक बदलाव के लिए जुझारु रहे

पंकज पुष्कर एक ऐसे परिवार से आते हैं, जिसकी 1937 से सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षिक कार्याे में भागीदारी रही है। 1937 में ‘तुमुल तूफानी’ नाम का अखबार चंदौसी से निकालना और ‘समाज सेवक फोर्स’ जैसा संगठन बनाना कुछ उदाहरण हैं। 1963 में नेहरु के जी उम्मीदवार को जब आचार्य कृपलानी ने अमरोहा से हराया तो उनका परिवार अगुआ था। 1975 की इमरजेंसी के बाद से परिवार की सक्रियता बढ़ी। वे छात्र-जीवन से ही राजनीतिक और सामाजिक बदलाव के लिए जुझारु रहे। जब बारहवीं कक्षा के वक्त तिगरी मेले के सर्वोदय सम्मेलन में अनुसूचित जाति-जनजाति के कमीश्नर और स्वराज के ‘पेसा’ कानून को लागू करवाने वाले बी डी शर्मा जी से मुलाकात हुई, तो उन्हें एक नया रास्ता मिल गया। तब जो डोर बंधी वह ताउम्र जारी है। बीडी शर्मा जी के साथ उन्होंने छत्तीसगढ, झारखंड के आदिवासी इलाकों में पेसा कानून और अन्य आंदोलनों का नेतृत्व किया। ‘भारत जन आंदोलन’ के सहयोग ‘पुस्तक कुटीर’ में भी सक्रिय रहे। भूमकाल पत्रिका के संपादन में बीडी शर्मा जी का सहयोग करते रहे।


1999 में उन्होंने पारिवारिक कारणों से, न चाहते हुए भी उत्तराखंड में असिस्टेंट प्रोफेसर का पद संभाला। इससे पहले उन्होंने गजरौला में ‘ड्राप आउट’ कहे जाने वाले वंचित बच्चों के लिए ‘बाल भारती’ नामक विद्यालय खोला। यहां खेल-खेल में प्रेमपूर्ण वातावरण के जरिए बाल-केंद्रित शिक्षा का इतना सुंदर प्रयोग चला कि छोटे-छोटे बच्चे स्वयं ही अपनी पत्रिका निकालने लगे।


उत्तराखंड के अति दूरस्थ गांव जैंती में भी उन्होंने अपने छात्रों और जीवन संगिनी के साथ मिलकर शिक्षा का एक अद्भुत आंदोलन ‘लोकशाला’ के नाम से शुरू किया। इस आंदोलन के जरिए न केवल बी ए के छात्र-छात्राएं अपने इलाके के प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे थे, बल्कि सरकारी शिक्षकों को भी जवाबदेह बना रहे थे। इसी दौरान ‘क्वीड़’ नाम की हस्त लिखित पत्रिका भी निकाली। लोकशाला का यह कार्यक्रम आगे रोजगार प्रशिक्षण के रूप में बढ़ा और महिलाओं को सिलाई, पत्रकारिता और अध्यापन का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। इसी दौरान उन्होंने वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी केदार सिंह कुंजवाल और अपनी जीवन संगिनी मेधा के साथ उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल की पदयात्रा कर गांवों में स्वालंबन का बिगुल फूंका। 


2006 में एनसीईआरटी और सीएसडीएस ने उन्हंे राजनीति शास्त्र की किताबों के लेखन हेतु आमंत्रित किया। इस दौरान वे कक्षा नौ से बारह की पाठ्य पुस्तकों के लेखन मंे शामिल रहे। इन पुस्तकों ने छात्रों को राजनीति विज्ञान और राजनीति के प्रति आकर्षित करने का काम किया। दिल्ली सहित पूरे देश में सेंट्रल बोर्ड से पढ़ने वाला हर छात्र ये किताबें पढ़ता है। इसी दौरान वे भारत जन आंदोलन, लोक राजनीति मंच, किसानी प्रतिष्ठा मंच और गैर-बराबरी उन्मूलन अभियान मंे शिद्दत से शामिल रहे। उन्हें कभी अपने कामों को प्रदर्शित करने या आगे आने की चाहना नहीं रही। वह जहां भी रहे चुपचाप समाज के बीच काम करते रहे।

अन्ना आंदोलन के प्रारंभ से ही पंकज पुष्कर पर्दे के पीछे रहकर काम करते रहे। उन्होंने इस बीच देश भर के सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं से बैठकें करके अन्ना आंदोलन के ऐतिहासिक महत्व पर सहमति बनाने का काम किया। वे डा. बीडी शर्मा जैसे वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता को भी आंदोलन में भागीदार बनाने मंे भी सफल हुए। पार्टी बनने के दिन से लेकर आज तक वह नौकरी से अवैतनिक अवकाश लेकर सक्रिय रहे। 

अरविन्द भाई और साथियों की प्रेरणा से उन्होंने 17 वर्ष की सरकारी सेवा से फरवरी 2014 में इस्तीफा दे दिया। 
पार्टी के संविधान बनाने से लेकर, नीति निर्माण और मिशन-विस्तार तक सभी कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी निभाई। पश्चिम उत्तर प्रदेश में संगठन निर्माण के लिए मिशन बुनियाद के आबर्जवर बनकर गए। पिछले विधानसभा चुनाव मंे पार्टी ने उन्हें तिमारपुर की जिम्मेदारी सौंपी। इस चुनौतीपूर्ण विधानसभा से किसी को भी जीत की उम्मीद नहीं थी, लेकिन पंकज पुष्कर की सबको जोड़ लेने की क्षमता ने सभी साथियों को अथक प्रयास के लिए तैयार किया और पार्टी को सफलता मिली। लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तराखंड मंे उम्मीदवारों के चयन का काम पार्टी ने इन्हें सौंपा। उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया। लोकसभा चुनाव मंे उन्होंने पार्टी के लिए वाराणसी, पंजाब, हरियाणा, अमेठी, बिहार में काम किया।

‘मिशन-विस्तार’ के तहत उन्हंे जम्मू-कश्मीर की जिम्मेदारी दी गई लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी की संगरूर बैठक में जाते समय श्री अरविंद केजरीवाल ने उन्हें तिमारपुर के रणक्षेत्र की जिम्मेदारी पुनः सौंप दी।


अरविंद भाई और आशुतोष भाई ने पंकज जी से आग्रह किया कि वे बाकी सभी काम छोड़ कर तिमारपुर पर पूरी तरह से फोकस करें। तब से पंकज पुष्कर तिमारपुर मंे तन-मन-धन से पूरी तरह एकाग्र हैं और पार्टी के लिए जिताऊ वातावरण बनाने के लिए हर घर से रिश्ता जोड़ने में दिन-रात जुटे हुए हैं।

पंकज जी का कहना है कि राजनीति असंभव को संभव बनाने की कला है। उनकी जिद है कि अरविंद भाई के स्वराज के सपने को पूरा करने में तिमारपुर को अगुआ बनना है। पंकज जी संगठन निर्माण को परिवार चलाने जैसा मानते हैं। इसी भावना के कारण आज तिमारपुर में सैंकड़ों साथी मेलजोल के साथ आम आदमी पार्टी को नयी ऊंचाई तक ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।

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