ABSLM -01/02/2015
स्मार्ट शहर परियोजनाओं को पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने, चयन मानदंडों में स्पष्टता और सुधारों के उपाय सुझाए
राज्यों ने शहरों के दो स्तरीय चयन प्रक्रिया और मेयरों और नगरपालिका कैडरों के कार्यकाल तय करने का सुझाव दिया ई-गवर्नेंस, ऑनलाइन सर्विस डिलवरी, एफएआर में बढ़ोतरी और यूजर फ्री आधारित छूट का भी सुझाव
प्रधानमंत्री के निर्देश पर स्मार्ट सिटी परियोजनाओं से जुड़े तमाम हिस्सेदारों के बीच दो दिन तक विचार-विमर्श
स्मार्ट शहरों के निर्माण की पहल ने एक अहम मील का पत्थर तय कर लिया है। शनिवार को राज्यों और स्मार्ट सिटी परियोजनाओं से जुड़े हिस्सेदारों ने कई सुझाव दिए। दोनों ओर से स्मार्ट सिटी की चयन प्रक्रिया के मानदंड सुझाए गए और वित्तीय संसाधन जुटाने के नए मॉडलों पर सहमति कायम हुई। साथ ही स्मार्ट शहरों के लिए लागू होने वाले शहरी गवर्नेंस के सुधारों पर भी रजामंदी कायम हुई। दरअसल ये सुझाव स्मार्ट शहरों से संबंधित सभी हिस्सेदारों और राज्यों के बीच दो दिवसीय परामर्श कार्यशाला के नतीजे थे। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर शहरी विकास मंत्रालय की ओर से आयोजित इस कार्यशाला का शनिवार को आखिरी दिन था।
इस कार्यशाला के दौरान हुए विचार-विमर्श में राज्यों और स्मार्ट सिटी से जुड़े अन्य हिस्सेदारों ने जो सिफारिशें कीं उन्हें आखिरी सत्र में शहरी विकास, आवास और गरीबी निवारण राज्य मंत्री श्री बाबुल सुप्रियो के सामने पेश किया गया। श्री सुप्रियो ही इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे। इस सत्र में 25 राज्यों के प्रधान सचिव नगर (पालिका) आयुक्तों, उद्योगों के प्रतिनिधि और शहरी मामलों के विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे थे।
कार्यशाला में स्मार्ट शहरों के लिए चयन प्रक्रिया और इनके विकास के संबंध में कई सुझाव दिए गए। राज्यों और दूसरे हिस्सेदारों का मानना था कि बेहतर स्मार्ट शहरों के निर्माण के लिए एक व्यापक नजरिये और शहर विकसित करने की रणनीति का होना बेहद जरूरी है। साथ ही स्वच्छ भारत मिशन की पहलकदमियों को आगे बढ़ाना, नगरपालिका कर्मचारियों का समय से वेतन भुगतान, सूचना और शिकायत निवारण के लिए तरीका निर्धारित करना और ई-न्यूज लेटर जारी करना स्मार्ट शहर निर्माण की इस दौड़ में शामिल होने की बुनियादी शर्त है।
शहरों की रैंकिंग और अंतिम चयन के लिए पैमाने और संबंधित भारांक (वेटेज) भी सुझाए गए। इसमें स्ववित्त योग्यता (भारांक 25 फीसदी), संस्थागत प्रणाली और क्षमता ( भारांक 25 फीसदी), मौजूदा सेवा स्तर तीन साल के लिए समर्पित कार्य योजना (भारांक 25 फीसदी) सुधारों को लागू करने के पिछले ट्रैक रिकार्ड (भारांक 15 फीसदी) और विजन डॉक्यूमेंट की गुणवत्ता (दस फीसदी) के पैमाने तय किए गए।
सुधारों के मोर्चे पर कई अन्य सिफारिशें भी की गईं। छोटे और महानगरों के लिए अलग-अलग सिफारिशें की गईं। जमीन के नकदीकरण (मुद्राकरण) पारदर्शी नीतियों के साथ फ्लोर एरिया रेश्यो (एफएआर) मानकों में बढ़ोतरी, ई-गवर्नेंस की ओर तेज रफ्तार तरक्की और ऑनलाइन सर्विस डिलीवरी, स्वच्छता समेत कई अन्य चीजों समेकित जीआईएस आधारित मास्टर प्लान, गतिशीलता, जमीन उपयोग, डिजिटल संपर्क, जलवायु परिवर्तन, मेयरों और नगरपालिका कर्मचारियों का निर्धारित कार्यकाल, सौ फीसदी कर और यूजर चार्ज वसूली, पार्षदों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और उनके क्षमता निर्माण, शहरों के लिए फिजिकल मास्टर प्लान बनाने से पहले आर्थिक मास्टर प्लान तैयार करने और नगरपालिका कैडर तैयार करने और क्रेडिट रेटिंग से संबंधित सिफारिशें भी की गईं।
जहां तक वित्त मुहैया कराने का सवाल है तो राज्यों का सुझाव था कि पीपीपी मॉडल के अलावा और उन्हें ईपीसी ( इंजीनयरिंग प्रॉक्यूरमेंट कांट्रेक्ट), यूजर शुल्क आधारित छूट का भी विकल्प दिया जाए ताकि निजी भागीदारी को बढ़ावा मिल सके। जो संगठन विकसित बुनियादी ढांचे का लाभ लेंगे उन पर प्रभाव शुल्क लगाने का सुझाव दिया गया। परियोजनाओं को निजी फंडिंग हासिल हो सके इसलिए क्लस्टर आधारित परियोजनाएं खड़ी की जाएं। निजी निवेशकों की परियोजनाएं कारगर हों इसके लिए सरकार की मदद, सेवाओं को अलग-अलग करने आदि के भी सुझाव मिले। इससे परियोजनाओं में निवेश आकर्षक होगा। एशियन डेवलपमेंट बैंक, विश्व बैंक, पेंशन फंडों और सोवरिन फंडों के समर्थन से कम लागत के इकट्ठा किए गए फंड की भी वकालत की गई। शहरों की क्रेडिट रेटिंग, शहरी परियोजनाओं के लिए नीतियों में बदलाव का भी सुझाव दिया गया ताकि शहरी परियोजनाएं आगे बढ़ सकें। ठोस कचरे से खाद तैयार करके बिक्री और सेवाओं के कॉरपोरेटीकरण का भी सुझाव मिला।
राज्य मंत्री शहरी बाबुल सुप्रियो ने राज्य सरकारों से अपील की कि वे स्थानीय शहरी निकायों को काम, फंड और कार्यकर्ता सौंपे ताकि स्मार्ट शहरों का काम तेजी से आगे बढ़े और देश में इनके निर्माण की चुनौती को मुस्तैदी से पूरा किया जा सके।
कार्यशाला में शहरी विकास मंत्रालय से सचिव श्री शंकर अग्रवाल और दूसरे वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। दो दिन के परामर्श सत्र का उद्घाटन श्री विकास मंत्री श्री वेंकैया नायडू ने 30 जनवरी, 2015 को किया था।
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