सिरसा, 2 नवंबर2015
साहित्य सेवी संस्था 'पहल ओर से श्री युवक साहित्य सदन के वाचनालय में एक साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. मोहन सपरा को पंजाब सरकार की ओर से शिरोमणि साहित्यकार अवार्ड मिलने पर सम्मानित किया गया। साथ ही युवा कलमकार सुरेश बरनवाल की पुस्तक पर भी चर्चा की गई। कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए समाजसेवी सतीश गुप्ता ने कहा कि जिस व्यक्ति में साहित्यिक जुड़ाव आ जाता है वही जीवनभर छूटता नहीं है।
प्रो. मोहन सपरा जो साहित्यिक संस्कार दे रहे हैं वह बहुत बड़ी जिम्मेदारी की बात है। गुप्ता ने हा कि बेशक साहित्यकार पुरस्कार के लिए नहीं लिखते लेकिन यह स्वाभाविक है कि जो साहित्यकार उत्तम साहित्य साधना करता है उसे पुरस्कार मिलता ही है। पहल के महासचिव एवं वरिष्ठ पत्रकार दिनेश कौशिक ने प्रो. मोहन सपरा को दिया गया सम्मान पत्र पढ़ा।
प्रो. मोहन सपरा को शॉल, प्रशस्ति पत्र और नारियल भेंट करके सम्मानित किया गया। अपने सम्मान के उपरांत मोहन सपरा ने कहा कि जब उन्हें शिरोमणि साहित्यकार पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ लेकिन बाद में खुशी हुई। उन्होंने कहा कि वे जीवन में कहीं भी रहें लेकिन सिरसा को कभी नहीं भूल पाएंगे क्योंकि सिरसा ने उन्हेें बहुत कुछ दिया है।
आज सिरसा का नाम विदेश में भी अदब से लिया जाता है। उन्होंने कहा कि बेशक वे लंबे अरसे से पंजाब में हैं मगर दिल और दिमाग सिरसा में बसता है। प्रो. सपरा ने अपनी एक कविता मुझे कैसे रोकोगे भी प्रस्तुत की। साहित्यकार वीरेंद्र भाटिया ने सुरेश बरनवाल की पुस्तक कतरा कतरा आकाश पर चर्चा करते हुए कहा कि कविताओं के बारे में कुछ कहने के लिए स्वयं को अध्ययन करना बहुत जरूरी है। कविता के साथ तारतम्य और हम कविता को अपने आचरण में कितना निभाते हैं, यह जानना जरूरी है।
साहित्यकार प्रो. रूप देवगुण ने प्रो. मोहन सपरा के साथ गुजारे दिनों को सांझा किया। उन्होंने बताया कि मोहन सपरा उनके सहपाठी रहे हैं और शुरू से ही साहित्य साधना में उनका मन रमता रहा है। प्रो. हरभगवान चावला ने सुरेश बरनवाल की पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा कि सुरेश बरनवाल जितने खामोश रहते हैं उतनी ही वाचाल उनकी कविता की खामोशी है। उनकी कविता पर पूरन मुद्गल और प्रो. मोहन सपरा का प्रभाव है। प्रो. चावला ने कहा कि ये विचार की कविताएं हैं। माकपा नेता का. स्वर्ण सिंह विर्क ने कहा कि यह बहुत खतरनाक समय चल रहा है। पूरे देश में अराजकता और असहिष्णुता का वातावरण है। जब तक अंध राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती रहेगी तब तक देश सही नहीं हो सकता। कलमकारों को अपने आपको आहत समझने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उन्हें इस असहिष्णुता और अराजकता के खिलाफ अपनी लेखनी का प्रयोग सशक्त तरीके से करने की जरूरत है।
इस दौरान गुरबख्श मोंगा और डॉ. हरविंद्र सिंह ने भी अपने विचार रखे। अध्यक्षीय भाषण में साहित्यकार पूरन मुद्गल ने नकोदर के डीएवी कॉलेज में मोहन सपरा की नियुक्ति का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उनकी लेखनी का सम्मान जरूरी है। मुद्गल ने कहा कि श्री युवक साहित्य सदन हिंदी को बढ़ावा देने का मुख्य केंद्र है। उन्होंने देशभर में असहिष्णुता व कट्टरता के खिलाफ संकल्प लेने पर जोर दिया और कहा कि एमएम कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पनसारे की हत्या और दादरी जैसे कांड भारत जैसे देशों के लिए अपमानजनक हैं। इसके खिलाफ पुरस्कार लौटाने वाले लेखक अपना विरोध जाहिर कर चुके हैं।
समाजसेवी प्रवीन बागला ने कहा कि हमें अपने आसपास जो भी गलत लगता है, उसके खिलाफ बोलना चाहिए। इस अवसर पर प्रो. आरपी सेठी, सेवानिवृत्त अध्यापक श्री कंबोज, सुरजीत सिंह रेणु, परमानंद शास्त्री, राजकमल कटारिया, प्रवीण कौशिक सहित शहर के कई नामचीन साहित्यकार और पत्रकार उपस्थित थे। पहल संस्था के अध्यक्ष लाजपुष्प ने सभी अतिथियों का आभार प्रकट करते हुए शानदार मंच संचालन किया। Rajkamal KATARIA
निवेदन :- अगर आपको लगता है की ये लेख किसी के लिए उपयोगी हो सकता है तो आप निसंकोच इसे अपने मित्रो को प्रेषित कर सकते है