सामाजिक ताने बाने में
राजनीति – दफ्तर –घर –पर्यावरण सभी विषयों को
पिछले दिनों , नयी दिल्ली गांधी शान्ति
प्रतिष्ठान में पुस्तक कविता संग्रह “ ठहरी बस्ती ठिठके लोग ” लेखक – अवधेश सिंह प्रकाशक – विजया बुक्स दिल्ली,
वर्ष : 2014 का लोकार्पण सम्पन्न हुआ ।
“शब्द संचार” नेट पत्रिका व “ऑफ द रिकॉर्ड”
मासिक समाचार पत्र के संयुक्त सहयोग तथा विजया बुक्स के
तत्वाधान में आयोजित इस लोकार्पण कार्यक्रम में प्रख्यात व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ
गंगा प्रसाद विमल की अध्यक्षता में क्रमशः
डॉ सुरेश ऋतुपर्ण , डॉ बृजेन्द्र त्रिपाठी ,
डॉ बी एल गौर , डॉ स्मिता मिश्रा ने
, डॉ वरुण कुमार तिवारी ने कविता संग्रह के संबंध
में अपनी सम्मति , विश्लेषण और आलोचनाओं को
प्रबुद्ध श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया । अस्वस्थता के कारण उपस्थित न हो सके
प्रख्यात साहित्यकार डॉ राम दरस मिश्र का आशीर्वचन लिखित वक्तव्य को उनकी पुत्री
द्वारा वाचन किया गया ।
डॉ डॉ बी एल गौर संपादक ‘‘द गौड़सन्स टाइम्स’’ द्विभाषिक पाक्षिक समाचार-पत्र , प्रकाशित कविता
संग्रह -(1) थोड़ी सी रोशनी, (2)
काव्याकृति, (3) आखिर कब तक?
(4) कब पानी में डूबा सूरज, (5) एक दिन यूँ ही । पुस्तकें -(1) लोकतंत्र में खोया लोकतंत्र (2) यथार्थ से संवाद ,
नींव से नाली तक (सिविल इंजीनियरिंग में पहली बार हिन्दी
में पुस्तक) कहानी संग्रह: ‘मीठी ईद’...... ने अपने वक्तव्य में कहा " मुक्त छंद में लय लाना एक
विशेषता है बड़ी सोसाइटी व झोपड़ पट्टी किसी कवि की आत्मा को छूए और वह अनुभूति को
शब्दों में व्यक्त करे यह उसकी क्षमता है । प्रबुध पाठक वर्ग ने उनके विश्लेषण को
पसंद किया ।
डॉ सुरेश ऋतुपर्ण द्वारा 20 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया गया है। विभिन्न साहित्यिक
योगदान के कारण हिन्दी साहित्य में इनका नाम बड़े आदर और सम्मान से लिया जाता है ।
जापान में प्रोफेसर पद पर सन् 2002 से सन् 2012 तक जापान के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ’तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फारेन स्टडीज, तोक्यो, में रहे । वर्तमान में के.
के. बिड़ला फाउंडेशन में निदेशक के रूप में कार्यरत हैं । विदेशों में हिन्दी
प्रसार सहित प्रवासी हिन्दी साहित्य में आपका बड़ा योगदान है डॉ ऋतुपर्ण जी ने अपने
रोचक लहजे में व्यक्त किया कि संग्रह कि कवितायें सामयिक हैं और समाज कि विपन्नता
व पीड़ाओं से जुड़ी हैं जबकि लेखक यदि चाहते तो इसमें अपनी कुछ प्रेम कवितायें भी रख
सकते थे , फिर उन्होने सवाल किया कि क्या इस दौरान लेखक को
प्रेम नहीं मिला ? । बच्चे शीर्षक से जुड़ी
कविता कि लाइनों को अपना समर्थन देने वाले साहित्य और एकेडिमिक क्षेत्रों से
सम्बद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री ऋतुपर्ण जी की वक्तव्य शैली का विशेष प्रभाव महिला
श्रोताओं पर दिखा ।
डॉ. ब्रजेन्द्र त्रिपाठी
......जी जो कि प्रख्यात साहित्यकार , विशिष्ट वक्ता ,
पूर्व उप सचिव , साहित्य आकेदमी हैं ,
जिनकी लंबी साहित्यिक यात्रा के विभिन्न उपलब्धियों का
जिक्र करें तो आता है उनके द्वारा दी गयी मौलिक कृतियाँ : कविता संग्रह ‘तलाश’, बाल कृति ‘हमारे राष्ट्रपति’, निबंध-संग्रह ‘साहित्य और परिवेश‘दो सहयोगी
कविता-संकलनों -‘विक्षुब्ध वर्तमान’ एवं ‘धूप बरामदे की’ में कविताएँ संकलित निबंध-संग्रह ‘साहित्य और परिवेश‘ तथा अनूदित कृतियाँ:जयंत
पाठक के गुजरात कविता-संग्रह ‘अनुनय’ का हिन्दी अनुवाद, साहित्य अकादेमी से
प्रकाशित,स्कालैस्टिक्स प्रकाशन से दो किशोरोपयोगी
अंग्रेज़ी उपन्यासों ‘जहाँआरा’ और संघमित्रा’ का अनुवाद , परम अबीचंदानी के सिन्धी उपन्यास का ‘ऐसे भी’ नाम से हिन्दी अनुवाद ।
यही नहीं अपने अनवरत लेखन
में जुडते हैं उनकी संपादित कृतियाँ:मलय की माटी में हिन्दी का बिरवा, महादेवी वर्मा अभिनंदन स्मारिका ,पं. विद्यानिवास मिश्र अभिनंदन स्मारिक ‘वेदार्थ मंजरी’ में संपादन सहयोग के साथ ‘साहित्य अमृत’ (मासिक) में
परामर्शदाता (मानद) व दो वर्षों तक साहित्य अकादेमी की द्विमासिक हिन्दी पत्रिका ‘समकालीन भारतीय । और तमाम विदेशी दौरे व तमाम अंतरराष्ट्रीय
संगोष्ठियों में उनकी सहभागिता । लोकार्पित कविता संग्रह "“ठहरी बस्ती ठिठके लोग” के लिए उनके सार गर्भित विश्लेषण और वक्तव्य को प्रबुद्ध श्रोताओं और मीडिया
से जुड़े वर्ग का जो समर्थन मुझे दिखाई दिया ।
डॉ स्मिता मिश्र जो श्री
गुरुतेग बहादुर खालसा कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में
मीडिया और साहित्य की एसोसिएट प्रोफेसर हैं तथा दूरदर्शन और आल इंडिया रेडियो की
प्रख्यात स्पोर्ट्स कमेंटेटर हैं व संपादक स्पोर्ट्स क्रीडा मासिक खेल समाचार पत्र
के साथ तमाम सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं में अनवरत सहभागिता रखती हैं उनके
द्वारा संग्रह के कथन पक्ष को सराहा गया । मीडिया और सामयिक रचनाओं से जुड़ी
कविताओं को उनके द्वारा सराहा गया । अपने आलेख में डॉ वरुण कुमार तिवारी नें
संग्रह की रोटी शीर्षक, आतंकवाद व आम आदमी शीर्षक
की कविताओं के माध्यम से संग्रह की भूमिका पर प्रकाश डाला गया ।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ
साहित्यकार –ग्रंथकार आलोचक कवि डॉ गंगा
प्रसाद विमल ने अपने महान अध्यन और श्रेष्ठ अनुभवों से कविता के शिल्पीय प्रबंधन से
जुड़े वक्तव्य दिये और कहा की “ठहरी बस्ती ठिठके लोग”
कविताओं का संग्रह में कवि ने एक ही विषय को चुन कर जहां
विपन्न और दबे कुचले तबके के विषय में रचनाएँ दी हैं वहीं सभ्रांत और बड़ी सोसाइटी
के शहरी जीवन से जुड़ी विसंगतियाँ भी दर्शाती हैं , सामाजिक ताने बाने में राजनीति – दफ्तर –घर –पर्यावरण सभी विषयों को एक
साथ पटल पर सजाने वाला यह संग्रह सृजनात्मक को दिशा देने वाला हैं” इस वक्तव्य को साहित्य से जुड़े प्रबुध श्रोताओं व साहित्यिक
पत्रिकाओं से जुड़े लेखकों द्वारा पसंद
किया ।
प्रारम्भ में पुष्प गुच्छ
द्वारा अतिथियों का स्वागत क्रमश : संग्रह के लेखक अवधेश सिंह, शोभिता सिंह , सौरभ कुशवाहा ,आकांक्षा तिवारी , अपूर्वा सिंह ,
आरती स्मित , प्रशांत तिवारी
व अनीता सिंह प्रबंध संपादिका शब्द संचार
नेट पत्रिका ने किया ।
कार्यक्रम का सफल संचालन
पूनम माटिया व रघुवीर शर्मा जी ने सयुंक्त रूप से किया । आभार प्रदर्शन योगेश
शर्मा विजया बुक्स द्वारा किया गया ।
इस अवसर पर जाने माने कवि व
लेखक गणो ने भी कार्यक्रम में शिरकत जिसमें क्रमश अतुल प्रभाकर , वीरेंद्र गुप्ता ,संजय मिश्रा ,
संजीव ठाकुर , शुभम अग्रहरी ,
मनोज दिवेदी ,सरोज श्रीवास्तव, प्रतिभा गुप्ता माही
थी ।
मीडिया व समाचार से जुड़े
अतिथियों में क्रमश : आफ्टर ब्रेक साप्ताहिक से मनीष कुमार सिन्हा , राष्ट्रीय सहारा से संजीव श्रीवास्तव , मलयालम मनोरमा से प्रदीप कुमार , ऑफ द रिकॉर्ड से अरुणेश सिंह , दूर दर्शन से रेखा व्यास ,
अश्वनी गुप्ता
परिंदे साहित्यिक पत्रिका से ठाकुर प्रसाद चौबे रहे ।
प्रबुद्ध श्रोताओं में
क्रमश : राजभाषा विभाग से वीरेंद्र कुमार सत्येंद्र दहिया, परमानंद जी , मनोज कुमार , दिनेश कुमार , विपुल प्रसाद ,
रघुबर दयाल , एम एम बघेल ,
दिवाकर पाण्डेय, कपिल देव नागर ,
दयाल चन्द्र , बाल कृष्ण बेगराजका
आदि उपस्थित रहे ।
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