abslm 18-06-2016
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा घाना के कोटे डी आइवर एवं नामीबिया की राजकीय यात्रा (12-18 जून, 2016) के समापन पर मीडिया को दिये गये वक्तव्य का मूल पाठ निम्नलिखित है। यह वक्तव्य राष्ट्रपति महोदय द्वारा कल (17 जून, 2016) विन्धोइक से नई दिल्ली के रास्ते पर विमान में दिया गया :
‘मैंने घाना के कोटे डी आइवर एवं नामीबिया की सफल राजकीय यात्रा (12-18 जून, 2016) सम्पन्न की है। मेरे शिष्टमंडल में राज्यमंत्री श्री जितेन्द्र सिंह और दो सांसद श्री एस.एस.आहलुवालिया और श्री मनसुख लाल मंडाविय शामिल थे। राष्ट्रपति भवन और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी मेरे शिष्टमंडल के हिस्सा थे।
मेरी घाना और कोटे डी आइवर की यात्रा किसी भी भारतीय राष्ट्रपति द्वारा पहली यात्रा थी। नामीबिया की मेरी यात्रा किसी भारतीय राष्ट्रपति द्वारा और 21 वर्षों के अंतराल के बाद की यात्रा थी। ये यात्रायें उस महत्व को परिलक्षित करती है, जो भारत अफ्रीका के इन महत्वपूर्ण देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के लिए देता है। ये यात्रायें अक्टूबर, 2015 में भारत में तीसरे भारत अफ्रीकी फोरम शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के बाद अफ्रीका के साथ भारत की सहभागिता को नई ऊर्जा का संकेत देती हैं।
इन तीनों देशों में जिस गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया गया, वह उस अद्वितीय एवं ऐतिहासिक मित्रता के बंधन का साझी है, जो भारत और अफ्रीका के बीच विद्यमान है। आज हम इस मजबूत आधार पर अपनी मित्रता को और मजबूत बनाना तथा आपसी लाभ के लिए साझा मूल्यों पर आधारित नये संबंधों का निर्माण करना चाहते है। ये यात्राएं मेरे लिए यह प्रतिबद्धता दोहराने का एक अवसर था कि भारत हमेशा ही अफ्रीका का सहयोगी देश बना रहेगा। मैंने तीनों देशों की सरकारों से आग्रह किया कि वे तीसरे भारत अफ्रीकी फोरम शिखर सम्मेलन के दौरान भारत द्वारा की गई घोषणाओं, विशेष रूप से 10 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त रियायती दरों पर ऋण, आईटीईसी एवं आईसीसीआर छात्रवृत्तियों में वृद्धि एवं 600 मिलियन डॉलर की सहायता-का अधिकतम लाभ उठायें।
मैंने इन देशों के नेताओं को विभिन्न क्षेत्रों में हमारी सरकार की पहलों और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में बढ़े हुए सहयोग के अवसर ढूंढ़ने के बारे में जानकारी दी। मैंने संयुक्त राष्ट्र, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, में सुधारों की जरूरत को उठाया। इस बात पर सहमति जताई गई कि मौजूदा संरचना वर्तमान वास्तविकताओं को प्रदर्शित नहीं करती और संबंधित सुधारों में बहुत अधिक देरी कर दी गई है। इन तीनों देशों के नेताओं ने विचार व्यक्त किया कि संयुक्त राष्ट्र में तत्कालिक सुधार की आवश्यकता है। विश्व की आबादी के छठे हिस्से के साथ भारत और अफ्रीकी महाद्वीप का अनिवार्य रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
बातचीत के दौरान मैंने समस्त सभ्य विश्व के सामने आतंकवाद द्वारा उत्पन्न किये जा खतरे को रेखांकित किया। मैंने उन्हें बताया कि आतंकवाद के प्रकोप से संयुक्त रूप से लड़ा जाना चाहिए और ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ आतंकवाद में कोई फर्क नहीं किया जाना चाहिए। मैंने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक संधि (सीसीआईटी) के शीघ्र समापन की अपील की। मेरी बातों का सभी लोगों का पूर्ण रूप से अनुमोदन किया गया।
तीनों देशों ने व्यापार एवं आर्थिक संबंधों की पूर्ण क्षमता का दोहन करने के लिए भारत से बढ़े हुए निवेशों की इच्छा जताई। मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि भारत की सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों ही प्रकार की कंपनियां इन देशों में अवसरों को लेकर उत्साहित है। मैंने उनसे आग्रह किया कि वे निवेश के लिए एक अनुकूल वातावरण का निर्माण करें एवं हमारे उद्योग जगत के साथ बातचीत प्रारंभ करे।
मैंने तीनों देशों में भारतीय समुदायों के साथ ही मुलाकात की और उनके मेज़बान देशों में उनकी सद्भावना और उच्च सम्मान को लेकर उनको बधाई दी। मैंने उनसे आग्रह किया कि वे भारत के लोगों एवं उनके मेज़बान देशों के बीच एक महत्वपूर्ण सेतु के रूप में कार्य करें।
मेरा विश्वास है कि इन तीनों देशों में मेरी यात्राओं से पहले से ही मजबूत एवं समय की कसौटी पर खरे द्विपक्षीय संबंधों में और नई मजबूती आएगी। इनसे अफ्रीका के साथ हमारे समग्र संबंधों को और गति मिलेगी। हमने इन यात्राओं के माध्यम से यह संदेश दिया है कि भारत अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को लेकर बहुत गंभीर है और तीसरे भारत अफ्रीकी फोरम शिखर सम्मेलन के दौरान की गई घोषणाओं का दृढ संकल्प के साथ अनुसरण करना चाहता है। भारत सभी अफ्रीकी देशों के साथ अपने सहयोग को और मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। अपने खुद के औपनिवेशिक अनुभव से सबक लेते हुए हम उनकी स्वनिर्भरता को मजबूत बनाने के उद्देश्य से क्षमता निर्माण पर फोकस करना जारी रखेंगे। हम अफ्रीका के राष्ट्रनिर्माण प्रयासों में सक्रिय साझीदार बने रहेंगे तथा अफ्रीकी महाद्वीप के सभी 54 देशों के साथ अपने राजनीतिक, आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों को मजबूती प्रदान करेंगे।
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