abslm 07-02-2017 लक्ष्मण सिंह स्वतंत्र
नईं दिल्ली, भारत में मधुमेह, महामारी की तरह फैल रहा है और इस बीमारी की मुख्य वजह जीवनशैली और खानपान में बदलाव है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन :आईंएमए: का मानना है कि इस बीमारी के प्रमुख कारणों में हमारे रोजमर्रा के भोजन में सफेद चीनी, मैदा और चावल जैसी खादृा वस्तुओं की अधिकता है।
आईंएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने ‘बताया, ‘‘रिफाइंड चीनी में कैलोरी की भारी मात्रा होती है, जबकि पोषक तत्व बिल्कुल नहीं होते। इसके उपयोग से पाचन तंत्र पर काफी बुरा असर पड़ सकता है और मधुमेह जैसी जीवनशैली से जुड़ी अनेकों बीमारियां होती हैं।’’ उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में पैकेट बंद खादृा पदार्थ हर घर में जगह बना चुके हैं। आटा का उदाहरण लें तो यदि आटा में मैदा न मिलाया जाये तो वह ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकता। इसी तरह, मैदे से बनी ब्रेड ने लगभग प्रत्येक परिवार में सुबह के नाश्ते में अपनी जगह बना ली है। सीधा गेहूं पिसवाकर प्राप्त आटे में चोकर होता है, जबकि बाजार के आटे में प्राय: मैदा मिला होता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान :एम्स: के डाक्टर संदीप मिश्र का कहना है, ‘‘रक्त में शर्करा की मात्रा तेजी से बढ़ाने में रिफाइंड काब्रोहाइड्रेट का अहम योगदान है जोकि मैदा जैसे खादृा पदार्थां में पाया जाता है। मीठी चीजों का यदि सेवन करना ही हो तो देशी गुड़ या शहद उपयुक्त विकल्प हैं।’ मिश्र ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक, देश की आबादी में 30 वर्ष से उपर की आयु के करीब 10 प्रतिशत लोग मधुमेह की बीमारी से ग्रस्त हैं या इसके करीब हैं।
अग्रवाल ने कहा कि इसी तरह, पहले सफेद चावल खाने की परंपरा नहीं थी, लेकिन आज छिलका उतरा हुआ सफेद चावल ही हर जगह खाया जाता है। ‘‘कुल मिलाकर कृत्रिम सफेद चीजों’’ ने हमारे जीवन में जहर घोल दिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे देश में व्रत आदि रखने की परंपरा के वैज्ञानिक कारण थे। अन्न दोष से बचने के लिए लोग सप्ताह में एक दिन उपवास रखते और उस दिन गेहूं से बनी चीजों का परित्याग करते थे। इसी तरह, महीने में एक दिन चावल का परित्याग करते थे। इससे उनकी इंसुलिन प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती थी।
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