ABSLM 14/10/2023 एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि अगर मनुष्य में क्षमा का भाव आता है तो समझो उसके अंदर धैर्य का वास हो गया है। लोभ धर्म को नष्ट कर देता है। श्रावक के लिए सत्य दूसरा व्रत है। श्रावक को अपनी समझ के द्वारा झूठ बोलने का जीवन पर्यन्त त्याग करना चाहिए। अगर साधू के पास 5 व्रत नहीं हैं तो वह साधू कहलाने के लायक नहीं है। यदि श्रावक 12 व्रत धारण नहीं करता है तो वह सही श्रावक नहीं है। इंसान लोभ में, डर में, क्रोध में व मजाक में झूठ बोलता है। श्रावक ने सामायिक करना धर्म माना, माला फेरना धर्म माना लेकिन सच बोलना अपना धर्म नहीं माना। आज सबसे अहम जरूरत सच बोलने को धर्म मानने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मर्यादित धार्मिक जीवन जीने वाला व्यक्ति श्रावक कहलाता है। यानि जो सद्गृहस्थ घर में रहते हुए गृहस्थ व व्यापार आदि कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करते हैं, नैतिक प्रमाणिक, मर्यादित, विश्वस्त एवं धार्मिक जीवन जीते हैं, हिंसा, झूठ, विषय, कषाय, क्रोध, लोभ, निंदा, चुगली आदि पापों से बचते हुए धर्म ध्यान एवं आत्मशुद्धि में लगे रहते हैं, साधु संतों की सेवा भक्ति, दर्शन, प्रवचन श्रवण व धर्माचरण का भाव रखते हैं तथा दान-पुण्य परोपकार आदि भी करते रहते हैं, वे श्रावक या श्राविका कहलाते हैं। श्रावक-श्राविका भी तीर्थ हैं, यानि अपना भी उद्धार करते हैं तथा अन्यों के उद्धार में भी सहायक बनते हैं। साधु-साध्वी भी यदि मर्यादा से बाहर जाएं तो श्रावक श्राविका उन्हें संभालें व सही रास्ते पर लाएं, ऐसा भगवान का आदेश है। सच्चा साधु कभी श्राप नहीं देता। जो श्राप देता है, वो साधु नहीं होता तथा उसका श्राप कभी लगता नहीं, अत: मन में कोई भी भय या शंका न रखते हुए साधु-साध्वी के संयम में सहयोगी बनें। साथ ही गृहस्थ को इतना दंभी, अहंकारी भी नहीं बनना चाहिए कि अपने गुरुओं के दोष ही ढूंढता रहे और उनकी हर क्रिया को शिथिलाचार समझने लगे।
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