मिट्टी में घट रहा है जीवांश पदार्थ एवं कार्बन की मात्रा, जैविक एवं संरक्षित खेती अपनाना है समय की आवश्यकता है: डॉ. पावन सिरौठिया
A B S L M 08/12/2024 न्यूज़ समाचार सेवा
[06:19, 8/12/2024] लछमण सिहँ रिलाईस आफिस:
सत्प्रवृत्ति के संवर्धन एवं कृषि संकाय - मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विज्ञान विभाग के उद्देश्यों को द्रष्टिगत करते हुए आज दिनांक 05/12/2024 को अतर्रा पी.जी. कॉलेज अतर्रा के कृषि संकाय - मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग एवं पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के संयुक्त तत्वाधान में विश्व मृदा दिवस के अवसर पर मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन - जागरूकता एवं सहभागिता विषयक एक दिवसीय गोष्ठी एवं छात्र -वैज्ञानिक अन्तर्क्रिया कार्यक्रम का सफल आयोजन पुस्तकालय सभागार में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में ग्रामोदय विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं ख्याति प्राप्त वरिष्ठ मृदा वैज्ञानिक प्रो. (डॉ.) पावन सिरौठिया जी, संरक्षक एवं सभाध्यक्ष के रूप में महाविद्यालय प्रबंध समिति के माननीय अध्यक्ष, प्रबंध समिति प्रो. (डॉ.) योगेंद्र सिंह जी, चेयरमैन के रूप में महाविद्यालय के यशस्वी प्राचार्य प्रो. (डॉ.) अवधेश चन्द्र मिश्रा जी, कार्यक्रम के संयोजक - डॉ. मोहम्मद हलीम खान (असिस्टेंट प्रोफेसर- मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन, कृषि संकाय ), सह-संयोजक, डॉ. कामता प्रसाद कुशवाहा (विभागाध्यक्ष - कृषि संकाय ) , एवं प्रबंध समिति के सम्माननीय सदस्य श्री सुदेश कुमार जैन जी, मंत्री श्री दिलीप सिंह चौहान जी तथा समस्त विभागों के विभागाध्यक्ष एवं शिक्षक, शिक्षणेत्तर कर्मचारी एवं छात्र छात्राऐ उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रजनन करके की गई। कार्यक्रम की शुरुआत में कृषि संकाय की छात्रा अवंतिका व उसकी सहेलियो ने संयुक्त रूप से सरस्वती वंदना एवं नेहा ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया । तत्पश्चात कार्यक्रम में पधारे हुए अतिथियों एवं मंचासीन अतिथियों का स्वागत माल्यार्पण एवं बैच अलंकरण के द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए संयोजक डॉ. मोहम्मद हलीम खान ने गोष्ठी/कार्यशाला की संक्षिप्त रूप रेखा एवं उसके उद्देश्यों को रेखांकित प्रस्तुत करते हुए बताया कि वर्तमान समय में भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में जहरीले कृषि रसायनों एवं उर्वरकों से युक्त सघन कृषि पद्धतियों के कारण मृदा/ मिट्टी में वर्ष दर वर्ष जीवांश पदार्थ एवं कार्बनिक-कार्बन की मात्रा घटती जा रही है, जो वैश्विक स्तर पर एक गम्भीर चिन्ता का विषय है, बुन्देलखण्ड की मृदाओं में इस जीवांश पदार्थ की औसतन मात्रा 0.6 प्रतिशत रह गई है,जबकि इसकी मात्रा 4-5 प्रतिशत तक होनी चाहिए, बुन्देलखण्ड की अधिकतर सभी मृदाओ में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे- आयरन, कापर, मैंगनीज, जिंक, मालीब्डेनम आदि की भी कमी है, इस प्रकार मृदा का स्वास्थ्य खराब होने के कारण मृदा उर्वरता में कमी एवं फसल उत्पादकता एवं अन्न उत्पादन का संकट गहराता जा रहा है, इस दिशा में सभी को ध्यान केंद्रित करने की महती आवश्यकता है। उक्त समस्या को दृष्टिगत रखते हुए इसके स्थायी समाधान हेतु यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसके समाधान हेतु किसान भाइयों को अधिक से अधिक प्राकृतिक/जैविक खेती, कंजर्वेशन एग्रीकल्चर ( संरक्षित खेती), मिनिमम टिलेज, फसल अवशेषों का प्रबंधन, नमी/ जल संरक्षण, कार्बनिक खादों एवं जैविक उर्वरकों का प्रयोग, फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश, हरी खाद के प्रयोग को अनिवार्य रूप से अपनाना चाहिए, इससे खाद्य सुरक्षा, फसल उत्पादन एवं उत्पाद गुणवत्ता दोनों ही अच्छा प्राप्त होता है। कार्यक्रम के प्रथम तकनीकी सत्र में मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में मन्चासीन महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं ख्याति प्राप्त वरिष्ठ मृदा वैज्ञानिक प्रो. (डॉ.) पावन सिरौठिया जी ने अपने उद्बोधन (प्लेनरी लेक्चर) में विश्व मृदा दिवस की पृष्ठभूमि, आवश्यकता एवं इसके महान उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए बताया कि यह दिवस प्रतिवर्ष 5 दिसंबर को मनाया जाता है जिसका उद्देश्य स्वस्थ मृदा के महत्व पर वैश्विक समुदाय का ध्यान केंद्रित करना तथा मृदा संसाधन के टिकाऊ प्रबंधन की वकालत करना है । उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि विश्व मृदा दिवस 2024 की थीम- Caring of Soil - Measure, Monitor, Manage है, उन्होंने बताया कि मृदा निम्नीकरण - Soil degradation ( भौतिक रासायनिक एवं जैविक) का प्रमुख कारण कृषि का वैश्वीकरण एवं आधुनिक रसायन युक्त सघन कृषि पद्धतिया हैं, लगातार नहरों के लवणीय जल से सिंचाई , कार्बनिक एवं जैविक खादों का प्रयोग न करना आदि है, जिसके फलस्वरूप मृदा स्वास्थ्य में उत्तरोत्तर गिरावट होती जा रही है, इसके लिए उन्होंने सभी किसान भाईयों से अपने खेत की मिट्टी की जांच कराकर मृदा स्वास्थ्य कार्ड की सिफारिशों के आधार पर जैविक खेती एवं संरक्षित खेती के सभी सिद्धान्तों जैसे न्यूनतम कर्षण (जुताई आदि), मृदा पलवार ( Soil mulching), इन सीटू नमी संरक्षण ( In situ Moisture conservation) आदि तकनीक की प्रमुखता से अपनाने की पुरजोर वकालत की । तथा कृषि संकाय के छात्र- छात्राओं को किसानों के हितों को द्रष्टिगत करते हुए इस दिशा में अधिक से अधिक शोध कार्य करने की सलाह देते हुए प्रेरित किया। कार्यक्रम की अगली कड़ी में संरक्षक एवं सभाध्यक्ष के रूप में मन्चासीन महाविद्यालय प्रबंध समिति के माननीय अध्यक्ष, प्रबंध समिति प्रो. (डॉ.) योगेंद्र सिंह साहब ने अपने उद्बोधन में बताया कि इस वर्ष के विश्व मृदा दिवस का उत्सव विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र - खाद्य एवं कृषि संगठन के बाहर पहली बार थाईलैंड प्रदेश द्वारा आयोजित पहला उत्सव है, जो FAO मुख्यालय के बाहर मनाया जा रहा है, यह संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन की पार्टियों एवं कोप सम्मेलन -16 के साथ मेल खाता है जो की 2 से 16 दिसंबर 2024 तक रियाद, सऊदी अरब एवं थाईलैंड में आयोजित किया जा रहा है। वैश्विक स्तर पर मृदा स्वास्थ्य के सुधार एवं प्रबंध के प्रति जनजागृति एवं सहभागिता हेतु इस कार्यक्रम का सीधा लाईव प्रसारण भी किया जा रहा है, जिसके आप सभी सहभागी बनें। कृषि प्रसार वैज्ञानिक होने के नाते उन्होंने अपने उद्बोधन में मृदा स्वास्थ्य सुधार एवं प्रबंधन की विभिन्न आयामों में से प्राकृतिक खेती ( Natura farming) जो कि पुरातन भारतीय संस्कृति एवं देशी गाय आधारित कृषि पद्धति है, के अपनाने पर जोर दिया । जिसमें प्रमुख रूप से जहरीले कृषि रक्षा रसायनों एवं उर्वरकों का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करने, फसल अवशेषों एवं गा या के गोबर से कम्पोस्ट खाद तैयार करने, गोमूत्र आदि से बीजोपचार हेतु बीजामृत, घन बीजामृत तथा मृदा स्वास्थ्य सुदृढ़ीकरण एवं पोषण हेतु जीवामृत, घन जीवामृत तथा फसलों की रोगों एवं कीट- व्याधियों से सुरक्षा हेतु ब्रह्मास्त्र एवं अग्नि अस्त्र के सफल प्रभावी प्रयोग पर जोर देते हुए बताया कि इन सभी पदार्थों को देशी गाय के गोमूत्र, गुड, दलहनी फसलों के आटे , नीम की पत्तियों आदि सामग्री को उचित मात्रा एवं अनुपात में मिश्रण करके घर पर या खेत पर कम से कम खर्च पर आसानी से तैयार कर प्रयोग करने की सिफारिश की । तथा कृषि संकाय के सभी विभागों ( मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन, सस्य विज्ञान, उद्यान विज्ञान एवं कृषि प्रसार विभाग) के छात्र छात्राओं से प्राकृतिक खेती के विभिन्न आयामों पर शोध परक कार्य करने तथा किसानों तक इन सभी के प्रसार/ हस्तानांतरण की सलाह दी। किसानों की आय बढ़ाने हेतु उन्होंने कुछ और भी महत्वपूर्ण कम लागत की तकनीकी की अनुशंसा की जिसमें प्रमुख रूप से मृदा नमूनों की जांच/ मृदा स्वास्थ्य कार्ड, मेड़बन्दी, गर्मी के मौसम में एक गहरी जुताई, फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश, जैव उर्वरकों (जैसै- राईजोबियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम, बीजीए, एजोला, पीएसबी) एवं कम्पोस्ट खाद ( वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप, फास्फो-कम्पोस्ट, एजोकम्पोस्ट) तथा फसल सुरक्षा हेतु जैविक सुरक्षा उपायों जैसे - ट्राईकोडर्मा आदि का समुचित प्रयोग, नियंत्रित कृषि ( controlled agriculture) के प्रयोग से ऑफ सीजन की फसलें या बेमौसम फसल उत्पादन कर अधिक आमदनी प्राप्त कर जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रेरित किया। तथा मृदा स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले समस्त प्रमुख कारण एवं उनके निवारण को विस्तृत रूप से व्याख्यायित किया।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में महाविद्यालय के प्राचार्य एवं कार्यक्रम के चेयरमैन डॉ. ए.सी. मिश्रा जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि मृदा एवं जल दोनों ही महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हैं जिनका एक दूसरे से बहुत ही घनिष्ठ संबंध है तथा यह सभी प्रकार के जीवों के जीवन का प्रमुख आधार स्तम्भ हैं, भारतीय संस्कृति में धरती/ मिट्टी को मां एवं जल को जीवन की संज्ञा दी गई है, अगर हमारी मिट्टी प्रदूषित/ अस्वस्थ है तो पूरी की पूरी पर्यावरण पारिस्थितिकी ( मृदा- जल- वायु) तथा खाद्य श्रृंखला ( मृदा-फसल/ खाद्यान्न-मानव एवं सभी जीव) प्रदूषित होती है तथा अन्न उत्पादन का संकट बढ़ जायेगा, मृदा स्वास्थ्य पूर्ण रूप से खाद्य सुरक्षा एवं कुपोषण से संबंधित है। भारत जैसे विकासशील देश में बढ़ती हुई जनसंख्या के खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसीलिए वर्तमान में सभी कृषि संस्थाओं द्वारा सभी लोगों का ध्यानाकर्षण हेतु मृदा स्वास्थ्य सुधार एवं प्रबंधन से सम्बंधित जन-जागरूकता एवं जन-सहभागिता जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को आयोजित करने की सख्त जरूरत है, इस प्रकार के कार्यों हेतु महाविद्यालय प्रशासन हमेशा कृषि संकाय की हरसंभव सहायता करेगा, क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप से ख़ाद्य सुरक्षा एवं कुपोषण से संबंधित है। कार्यक्रम में कृषि संकाय सभी शिक्षकों ने तथा कुछ अन्य विभागों के शिक्षकों ने उपर्युक्त विषयक अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये । जिसमें प्रमुख रूप से रसायन विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजय आर्य जी ने बताया कि खेती किसानी में कृषि रसायनों जैसे Fungicide, Insecticide, Herbicide, Rodenticide आदि एवं रासायनिक उर्वरकों जैसे यूरिया, डीएपी आदि का कम से कम एवं सुरक्षित प्रयोग की वकालत की, क्योंकि इन सभी जहरीले रसायनों का मृदा स्वास्थ्य एवं सूक्ष्म जीवों पर हानिकारक प्रभाव हो सकता है। कृषि संकाय के डॉ. विवेक चक्रवर्ती जी ने विभिन्न मृदा सुधारकों के प्रयोग को बताया, विभागाध्यक्ष एवं सह संयोजक डॉ. कामता प्रसाद कुशवाहा ने मृदा एवं जल संरक्षण की विभिन्न विधियों को विस्तृत रूप से व्याख्यायित किया। कार्यक्रम में कृषि संकाय के डॉ. नवल किशोर गुप्ता, डॉ. सी. एल. कुशवाहा, डॉ. सियाराम, डॉ. संजय श्रीवास्तव, श्री विनोद कुशवाहा व सभी विभागों के विभागाध्यक्ष तथा शिक्षक जिसमें प्रमुख रूप डॉ. पी.के. विश्वकर्मा, डॉ. अनन्त त्रिपाठी, डॉ बृजनाथ पांडेय, डॉ सतीश कुमार श्रीवास्तव, डॉ विवेक पांडेय डॉ. आर.बी. कुशवाहा, डॉ. आर. आर. द्विवेदी, डॉ. शिखा जैन डॉ. राजीव अग्रवाल, डॉ. अनीता शर्मा, डॉ पंकजा शर्मा, डॉ डिम्पल, डॉ. मैत्रेयी सिंह आदि ने भी अपने अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम के द्वितीय तकनीकी सत्र में कृषि संकाय के बीएससी कृषि के छात्र छात्राएं तथा मृदा विज्ञान विभाग एवं सस्य विज्ञान विभाग के छात्र/छात्राओं ने सक्रिय रूप से प्रतिभाग किया तथा उक्त कार्यक्रम से सम्बंधित विभिन्न शीर्षकों में पावर प्वाइंट के माध्यम से अपना अपना प्रजेंटेशन किया। प्रजेंटेशन देने वाले छात्रों में प्रमुख रूप से प्रशान्त दीप गुप्ता, भास्कर शुक्ला, सिद्धार्थ दोसर, दीप्ति अग्रवाल, सुशील कुमार, शंकर दीन तथा रामानुज ने मृदा स्वास्थ्य सुधार एवं गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न उत्पादन के विभिन्न आयामों एवं शीर्षकों पर व्याख्यान / प्रस्तुतीकरण दिए। कार्यक्रम के धन्यवाद ज्ञापन एवं समापन सत्र में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. ए. सी. मिश्रा जी ने आए हुए सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया, तथा कृषि संकाय के सभी शिक्षकों को कार्यक्रम के सफल आयोजन की सराहना एवं बधाई देते हुए एवं कार्यक्रम समापन की घोषणा की । कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारी तथा सैकड़ों छात्र / छात्राएं उपस्थित रहे।
* अवधेश शिवहरे
मंडल ब्यूरो चीफ
संवाद सूत्र
दिनेश कुमार गुप्ता
तहसील ब्यूरो
धन्यवाद
*दिनेश कुमार गुप्ता
तहसील ब्यूरो
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